भारतीय राजनीति में ऐसे कई चेहरे हैं जो सत्ता की चकाचौंध से दूर रहते हुए भी जनता की आवाज़ बनते हैं। सत्यपाल मलिक ऐसे ही एक नेता थे। उनका जीवन, विचारधारा और संघर्ष उन्हें आम नेताओं से अलग करता है। 5 अगस्त 2025 को उनके निधन के साथ, भारतीय राजनीति ने एक साहसी, मुखर और किसान-हितैषी नेता खो दिया।
🧒 प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
जन्म: 24 जुलाई 1946, हिसवाड़ा गाँव, बागपत, उत्तर प्रदेश
पृष्ठभूमि: जाट किसान परिवार
शिक्षा: मेरठ कॉलेज से बी.एससी. और एलएलबी
वे अपने छात्र जीवन में एक प्रखर वक्ता और संगठनकर्ता के रूप में उभरे।
वे 1968 में मेरठ कॉलेज के छात्र संघ अध्यक्ष बने और यहीं से उनके राजनीतिक सफर की शुरुआत हुई।
🏛️ राजनीतिक सफर की शुरुआत
उन्होंने राजनीति में अपना पहला कदम 1974 में रखा, जब वे चौधरी चरण सिंह की पार्टी भारतीय क्रांति दल से विधायक बने।
राज्यसभा सदस्य के रूप में, उन्होंने दो बार (1980-1989) उत्तर प्रदेश का प्रतिनिधित्व किया।
1989 में, वे जनता दल से अलीगढ़ से लोकसभा सांसद बने और केंद्र सरकार में पर्यटन एवं संसदीय कार्य राज्य मंत्री बने।
🚩 दल परिवर्तन और भाजपा में शामिल होना
समाजवादी विचारधारा से शुरुआत करने के बावजूद, सत्यपाल मलिक समय के साथ कई पार्टियों में रहे।
2004 में भाजपा में शामिल हुए और 2012 में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बने।
उन्होंने पार्टी के खिलाफ बोलने से कभी परहेज नहीं किया और न ही जनहित के मुद्दों पर चुप रहे।
🏰 राज्यपाल के रूप में कार्यकाल
राज्य का कार्यकाल
बिहार 2017 – 2018
ओडिशा (कार्यवाहक) 2018
जम्मू और कश्मीर 2018 – 2019
गोवा 2019 – 2020
मेघालय 2020 – 2022
अनुच्छेद 370 हटाए जाने के साक्षी
जम्मू और कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाए जाने के दौरान वे राज्यपाल थे।
उन्होंने इस ऐतिहासिक घटना की निगरानी की और प्रशासनिक भूमिका निभाई।
यहाँ से उनकी राजनीतिक छवि “सत्ता पर सवाल उठाने वाले राज्यपाल” की बन गई।
🌾 किसानों की आवाज़
सत्यपाल मलिक ने किसान आंदोलन (2020-21) के दौरान केंद्र सरकार की नीतियों की खुलकर आलोचना की।
उन्होंने कहा – “किसानों से टकराने वाली सरकार ज़्यादा दिन नहीं टिकेगी।”
इस बयान ने उन्हें किसानों के बीच एक ‘जननेता’ के रूप में स्थापित कर दिया।
🗣️ स्पष्ट वक्ता और निडर व्यक्तित्व
चाहे सरकार हो या विपक्ष – सत्यपाल मलिक सत्ता में रहते हुए भी विरोध करने से नहीं डरते थे।
उन्होंने कई बार खुलकर कहा कि “राज्यपाल रहते हुए भी, मैंने केंद्र की गलत नीतियों पर सवाल उठाए।”
बेबाक बयान उनकी पहचान बन गए थे।
⚰️ मृत्यु और कारण
मृत्यु तिथि: 5 अगस्त 2025
स्थान: राम मनोहर लोहिया अस्पताल, दिल्ली
स्वास्थ्य स्थिति: मूत्र संक्रमण, कोविड से जुड़ा निमोनिया और कई अंगों का काम करना बंद कर देना
अस्पताल में 5 दिनों तक इलाज चला, लेकिन अंततः शरीर ने जवाब दे दिया।
🇮🇳 राष्ट्रीय श्रद्धांजलि
प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, विपक्षी नेताओं और किसान संगठनों ने उनके निधन पर शोक व्यक्त किया।
प्रधानमंत्री ने कहा – “सत्यपाल मलिक का जीवन सादगी, संघर्ष और निडरता का प्रतीक रहा है।”
किसानों ने कहा – “हमने एक ऐसा नेता खो दिया है जिसने संसद में हमारी आवाज़ उठाई।”
✅ निष्कर्ष
सत्यपाल मलिक एक ऐसा नाम थे जिन्होंने राजनीति को सिर्फ़ सत्ता का नहीं, बल्कि सेवा का माध्यम माना।
उनका जीवन उन लोगों के लिए प्रेरणा है जो राजनीति में रहते हुए भी सच्चाई और ईमानदारी से जुड़ना चाहते हैं।
वे चले गए, लेकिन उनके विचार, संघर्ष और बेबाकी हमेशा याद रखी जाएगी।