🔍 ट्रंप की टैरिफ नीति क्या थी?
डोनाल्ड ट्रंप ने 2017 से “प्रोटेक्शनिज़्म” (सुरक्षावाद) को बढ़ावा देना शुरू किया। उनका मानना था कि चीन, भारत और अन्य विकासशील देश अमेरिकी बाज़ारों का फायदा उठा रहे हैं, जबकि अमेरिकी कंपनियों को नुकसान हो रहा है। इसी सोच के तहत उन्होंने:
- स्टील और एल्युमिनियम पर भारी टैरिफ लगाए
- जीएसपी (Generalized System of Preferences) के तहत भारत को मिलने वाली व्यापारिक छूट को रद्द कर दिया
- भारत के मेडिकल उपकरणों और कृषि उत्पादों पर शुल्क बढ़ा दिया
🇮🇳 भारत पर इसका असर
- निर्यात को झटका:
भारत के लाखों डॉलर के निर्यात पर शुल्क लगने से व्यापार घाटा बढ़ा। विशेषकर मेडिकल उपकरण, जेम्स और ज्वेलरी और स्टील जैसे सेक्टर प्रभावित हुए। - GSP छूट समाप्त:
भारत को जीएसपी के तहत सालाना लगभग $6 बिलियन तक का लाभ होता था। इसे रद्द किए जाने से भारतीय निर्यातकों को बड़ा झटका लगा। - उत्तर में भारत की प्रतिक्रिया:
भारत ने भी बदले में अमेरिका के कई उत्पादों — जैसे बादाम, अखरोट, और कुछ औद्योगिक सामान — पर टैरिफ बढ़ा दिए। ये एक तरह का ‘टैरिफ युद्ध’ बन गया।
📚 भारत के लिए सबक
- बहुपक्षीय साझेदारियों की आवश्यकता:
एक ही बड़े बाज़ार पर निर्भर रहने की नीति जोखिम भरी हो सकती है। भारत को यूरोप, अफ्रीका और ASEAN जैसे नए बाज़ारों की ओर रुख करना चाहिए। - आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ना:
ट्रंप की नीति ने भारत को आत्मनिर्भर भारत (Aatmanirbhar Bharat) अभियान को तेज़ करने की प्रेरणा दी। इससे घरेलू उत्पादन और मैन्युफैक्चरिंग पर ज़ोर बढ़ा। - कूटनीतिक रणनीति को मजबूत करना:
व्यापारिक विवादों को हल करने के लिए सिर्फ़ आर्थिक नहीं, बल्कि कूटनीतिक स्तर पर भी मज़बूती ज़रूरी है। भारत को अपनी विदेश नीति में व्यापार को प्राथमिकता देनी चाहिए।
🧭 चुनौती या अवसर?
हालाँकि ट्रंप की टैरिफ नीति ने भारत के लिए तत्कालिक चुनौती पेश की, परंतु दीर्घकाल में इसने भारत को आत्मनिर्भर बनने, वैकल्पिक बाज़ार खोजने और रणनीतिक सोच विकसित करने का अवसर दिया।
निष्कर्ष:
ट्रंप की टैरिफ रणनीति ने भारत-अमेरिका संबंधों में एक नया मोड़ लाया। यह हमें सिखाता है कि वैश्विक व्यापार में स्थिरता नहीं होती — और हर चुनौती में एक अवसर छिपा होता है। भारत ने न केवल इस चुनौती का सामना किया बल्कि इससे आगे बढ़ने की दिशा भी तैयार की।

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